आत्मनिर्भर भारत की ओर: प्राचीन शिल्पकला के पुनर्जागरण की दिशा में

भारत के समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर में छिपी हैं अनेकों पारंपरिक शिल्पकलाएँ, जो हमारी पहचान और गौरव का हिस्सा रही हैं। ये शिल्पकलाएँ न केवल हमारी संस्कृति का प्रतीक हैं, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी रही हैं। चर्म शिल्प, बांस शिल्प, काष्ठ शिल्प और माटी शिल्प जैसी कलाएँ सदियों से हमारे समाज में रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत रही हैं।

लेकिन, विदेशी प्रभाव और आधुनिकता की आंधी ने इन पारंपरिक कलाओं को हमारे समाज से हटा दिया। विदेशियों ने हमारी कलाओं को अपनाकर, उन्हें सुधारकर और उनका लाभ उठाकर समृद्धि हासिल की, जबकि हम बेरोजगारी और हमारे अद्वितीय कौशल की अनदेखी का सामना कर रहे हैं। इस परिस्थिति से उबरने का एकमात्र उपाय है कि हम अपनी प्राचीन कर्म आधारित व्यवस्था में लौटें और अपनी धरोहर को पुनर्जीवित करें।

महूगांव, इंदौर स्थित स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र में, गुरुजी श्री रविन्द्र शर्मा के मार्गदर्शन में, हम बेरोजगारों को इन प्राचीन कलाओं का निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य है कि हम वंशानुगत हुनर हस्तांतरण की प्राचीन भारतीय पद्धति को पुनर्जीवित करें, जिससे बेरोजगार युवा आत्मनिर्भर बन सकें और अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व कर सकें।

माटी शिल्प: मिट्टी के शिल्प की कला को फिर से खोजें

माटी शिल्प, या “माटी शिल्प,” भारतीय शिल्पकला के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण रूपों में से एक है। मटके, तवे, चूल्हे से लेकर पानी की बोतलें, चम्मच, गिलास और सजावटी वस्तुएं तक, माटी शिल्प भारतीय जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।

आज के तेज रफ्तार वाले युग में, पारंपरिक माटी शिल्प की कला को भुलाए जाने का खतरा है। फिर भी, पर्यावरण मित्रता और स्थायित्व की मांग बढ़ रही है, जो इस प्राचीन शिल्प को पुनर्जीवित करने के लिए सही समय है।

महूगांव, इंदौर स्थित स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र में, गुरुजी श्री रविन्द्र शर्मा के निर्देशन में, हम निःशुल्क माटी शिल्प का प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। इस प्रकार, हम बेरोजगार व्यक्तियों को इन कौशलों से लैस करते हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर समुदायों का निर्माण कर सकें और अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व कर सकें।

माटी शिल्प को पुनर्जीवित करने और स्थायी जीवन शैली को प्रोत्साहित करने के हमारे मिशन में शामिल हों। हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए पंजीकरण करें या हमारे उद्देश्य में योगदान दें।

काष्ठ शिल्प: कौशल और कलाकारी की विरासत

काष्ठ शिल्प, या “काष्ठ शिल्प,” भारतीय परंपरा का एक प्राचीन कला रूप है, जिसमें फर्नीचर, सजावटी वस्तुएं और दैनिक उपयोग की वस्तुएं लकड़ी से बनाई जाती हैं। आधुनिक समय में भी, लकड़ी के सामान अपनी सुंदरता और टिकाऊपन के कारण अत्यधिक मांग में रहते हैं।

हालांकि, काष्ठ शिल्प के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल समय के साथ घटते जा रहे हैं, क्योंकि औद्योगिक तरीकों ने पारंपरिक शिल्पकला की जगह ले ली है। इन कौशलों को संरक्षित और प्रोत्साहित करना आवश्यक है, ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखा जा सके और स्थायी रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकें।

महूगांव, इंदौर स्थित स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र में, हम निःशुल्क काष्ठ शिल्प का प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, जिससे व्यक्तियों को इस प्राचीन कला को सीखने और निपुण बनने में मदद मिलती है। इस प्रकार, हम आत्मनिर्भर समुदायों का निर्माण करना चाहते हैं, जहाँ पारंपरिक कौशल न केवल संरक्षित होते हैं, बल्कि प्रगति भी करते हैं।

काष्ठ शिल्प को पुनर्जीवित करने और स्थायी रोजगार प्रदान करने के हमारे प्रयासों का समर्थन करें। हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए पंजीकरण करें या हमारे उद्देश्य में योगदान दें।

बांस, अपनी स्थिरता और मजबूती के लिए जाना जाता है, भारतीय शिल्पकला का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। बांस शिल्प, या “बांस शिल्प,” में टोकरियाँ, चटाई और विभिन्न घरेलू सामानों का निर्माण शामिल है। शहरी क्षेत्रों में इसकी लोकप्रियता कम हो गई है, लेकिन ग्रामीण जीवन में बांस के उत्पाद आज भी महत्वपूर्ण हैं, जो इसकी स्थायित्व और पर्यावरण मित्रता को प्रदर्शित करते हैं।

आधुनिक युग में बांस शिल्प को पुनर्जीवित और प्रोत्साहित करना आवश्यक है। इससे हम न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं, बल्कि स्थायी जीवन शैली में भी योगदान देते हैं। बांस की शुद्धता और मजबूती का प्राचीन विश्वास इसकी स्थायी महत्ता का प्रमाण है।

महूगांव, इंदौर स्थित स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र में, बेरोजगार व्यक्तियों को निःशुल्क बांस शिल्प का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस प्रकार, हम आत्मनिर्भर समुदायों का निर्माण कर सकते हैं, जहाँ पारंपरिक कौशल न केवल संरक्षित होते हैं, बल्कि प्रगति भी करते हैं।

बांस शिल्प को पुनर्जीवित करने के हमारे प्रयासों का समर्थन करें। हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए पंजीकरण करें या हमारे उद्देश्य में योगदान दें।

भारत की शिल्पकला का धरोहर अत्यंत समृद्ध है, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी कौशल हस्तांतरित होता आया है। ऐसी ही एक पारंपरिक शिल्पकला है चर्म शिल्प, जिसे अंग्रेजी में “Leather Craft” कहते हैं। चर्म शिल्प के अंतर्गत चप्पल, जूते, सैंडिल, बैग, बेल्ट, पर्स, खिलौने आदि विभिन्न वस्तुएं बनाई जाती हैं, जो न केवल व्यावहारिक होती हैं, बल्कि शिल्पकला के लिए भी अत्यधिक मूल्यवान होती हैं।

हालांकि, औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण के आगमन ने इस प्राचीन कौशल को घटा दिया है। विदेशियों ने हमारे पारंपरिक शिल्पकला की महत्ता और विशेषज्ञता को पहचानते हुए इन तकनीकों को अपनाया, उनमें सुधार किया और उनसे लाभ अर्जित किया, जबकि हम, जो इसके मूल स्रोत थे, बेरोजगारी और पहचान की कमी का सामना कर रहे हैं।

यह समय है कि हम अपनी धरोहर को फिर से प्राप्त करें। जिस प्रकार प्राचीन समय में कौशल हस्तांतरण होता था, उसी प्रकार बेरोजगारों को चर्म शिल्प सिखाकर उन्हें स्वावलंबी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। महूगांव, इंदौर स्थित स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र में गुरुजी श्री रविन्द्र शर्मा के निर्देशन में हम बेरोजगार व्यक्तियों को चर्म शिल्प में निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय स्थापित कर सकें।

हमारे मिशन को समर्थन दें और पारंपरिक भारतीय शिल्पकला को पुनर्जीवित करें। हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए पंजीकरण करें या हमारे उद्देश्य में योगदान दें।

कर्म आधारित प्राचीन भारत के यें काम (चित्र) विदेशियों ने दीन हीन तुच्छ बताने का षडयंत्र कर हमसे छीन लिया और हमसे ही हमारा काम सीखकर वे स्वयं गर्व से करते हुये समृद्ध हो गये और हम बेरोजगार!

दोषी कौन विदेशी या हमारी मूर्खता  ?

रोजगार की समस्या का एक मात्र हल, हमें पुनः अपनी प्राचीन कर्म आधारित व्यवस्था में लौटना होगा।

वंशानुगत हुनर हस्तांतरण की प्राचीन भारतीय पद्धति को पुनः जीवित करने के लिये, बेरोजगारों को हुनर सिखाकर उनके स्वरोजगार स्थापित कराने की योजना ।

गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा

स्वरोजगार प्रशिक्षण केन्द्र

महूगांव, इंदौर म.प्र. को सहयोग करें

हम क्या करते हैं?

हम शिक्षित करते हैं और उन्हें स्वरोजगार के लिए सशक्त बनाते हैं! यहां कुछ प्रशिक्षण दिए गए हैं जो हम निःशुल्क देते हैं

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चर्म शिल्प

चर्म शिल्प अंग्रेजी में इसे लैदर क्राफ्ट कहते है। इसके अंतर्गत चप्पल, जूते, सैंडिल, स्लीपर, बैग, बैल्ट, पर्स, खिलौने आदि कई प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती हैं और बहुत पसंद भी की जाती है। 

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बांस शिल्प

आजकल आधुनिक युग में बांस की टोकरी या सुप का चलन नगर में कम हो गया है फिर भी गांव में आज भी बांस के बने हुए टोकरी हैं और सुप  एवं बांस से बने हुए विभिन्न प्रकार की वस्तुएं आज भी प्रचलन में है बांस का जो वास्तविक नाम है वह वंश मतलब जो कभी खत्म नहीं होता बांस एक ऐसी वस्तु है जो उसको सबसे शुद्ध माना गया है 

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काष्ठ शिल्प

काष्ठ शिल्प की बात करें तो   टेबल कुर्सी और विभिन्न प्रकार की लकड़ीयों से बना हुआ सामान उसे हम काष्ठ शिल्प कहते हैं आज के वर्तमान (मॉर्डन) युग में की हम बात करें तो लकड़ी का सामान जगह-जगह देखने को मिलता है।

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माटी शिल्प

माटी शिल्प की बात करें तो मटका, तवा, चुल्हा आदि वस्तुएं हमारे ध्यान में आती है। और इस तरह की वस्तु हमारे ध्यान में आती है। लेकिन वर्तमान युग में माटी से बनी हुई विभिन्न प्रकार की वस्तुएं हम देखते है, पानी पीने की बोतल, चम्मच करछी, गिलास, कढ़ाई, तवा, कुकर , भगोने, गृह सज्जा का सामान, आदि दैनिक जीवन मे उपयोग में आते है वह भी माटी की बनती है वह भी मिल रही है

हमारे बारे में

संस्था ने वर्ष 2001 में कारीगरों के सर्वांगीण विकास को लेकर अपनी यात्रा मध्य प्रदेष चर्मोद्योग संघ के बेनर पर प्रारंभ की ।संस्था को विधिवत पंजीयन कराने के समय मध्य प्रदेष शब्द के कारण नाम के पंजीयन में आपत्ति के पश्चात नाम चर्मपदत्राण उद्यमि विकास  समिति रखना निश्चित किया। वर्ष 2004 में पंजीयन पश्चात संस्था का कार्य इसी नाम से संचालित है।

चर्मपदत्राण उद्यमी विकास समिति विगत 25 वर्षों से कारीगर समाज के सर्वांगीण विकास के लिए कार्यरत है संस्था द्वारा कारीगर समाज के लिये विभिन्न विकास  कार्य किए गए हैं ,जिसमें प्रमुख रुप से ग्वालियर में  सड़क पर बैठकर रिपेयर, पॉलिश करने वाले  181 मोची बंधुओं को 4 बाय 6 की पक्की गुमठी नगर निगम ग्वालियर एवं मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से प्रदान की गई है ।
संस्था ने मोची समाज के सड़क पर बैठकर रिपेयर, पॉलिश करने वाले बंधुओं  का पूरे प्रदेश में सर्वे किया है जिला स्तर पर 3276 लोग वर्ष 2012 में चिन्हित  किये गये थे
संस्था द्वारा राज्य में कारीगर आयोग का गठन करने हेतु जो प्रयास किया गया था वो 2017 सफल हुआ । राज्य में कारीगर आयोग देश का पहला कारीगर आयोग है।

 संस्था के संस्थापक  श्री श्याम पेढारकर स्वयं एक कुशल चर्मशिल्पी होकर 2001 में 10 फुट लंबी चप्पल बनाने के लिये लिम्का बुक आॅफ रिकार्ड मे स्थान ष्राप्त है।

संस्था को 12 A ,80G  सर्टिफिकेट प्राप्त है।

संस्था का पंजीयन क्रमांक GWL/9202/ARN/3715 Dated 02-11-2004

बेरोजगारो को हुनरमंद बनाना और उनके स्वरोजगार स्थापित कराना , देश में बेरोजगारी की समस्या का समाधान यदि कुछ है तो वह यह है कि हमें हमारी प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था की ओर जाना पड़ेगा, जहां एक बेटे को हुनर सिखाने की आवश्यकता नहीं थी, वह अपने पिता को कार्य करता देखकर ही उस हुनर में पारंगत हो जाता था ।
हमारा लक्ष्य है कि हम आज के बेरोजगार युवकों को जो कहते हमारे पास काम नहीं है। “जब हाथ हैं तो काम है” तो काम करो और आज काम करने के लिए हुनर सीखने की आवश्यकता है। आज हम उसी हुनर को आमजन तक फिर से पहुंचाएंगे। उन्हें निशुल्क प्रशिक्षण देंगे जिसमें किसी प्रकार की कोई परीक्षा की बाध्यता नहीं होगी। सीधे औजार से काम कीजिए, काम सीखिए और काम सीखने के पश्चात अपना स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए संस्था हरसंभव मदद करेगी यही संस्था का लक्ष्य है।

 हमारे जो बेरोजगार नवयुवक हैं उनकी मानसिकता पश्चिम की ओर पश्चिमी सभ्यता में पश्चिमी रीति रिवाज में पूरी तरह से जुड़ी हुई है सबसे पहले हमें विशेष ध्यान यह रखना होगा कि हम उन नव युवकों को, उनकी मानसिकता को, काम के लिए बदल पाए, उनको यह समझा पाए कि “जब हाथ है तो काम क्यों नहीं” हमें हुनर सीखना होगा और जो हुनरमंद होंगे वही भविष्य में काम कर पाएंगे, क्योंकि आने वाले समय में हाथों से निर्मित उत्पादों की मांग अधिकाधिक बढ़ेगी। जैसा कि परिवर्तन की शुरुआत आज हर क्षेत्र में देखने को मिल रही है। उसका बड़ा कारण यह है कि कम्प्यूटराइज् युग में , जिस हाथ के कार्य पर हम आश्रित थे वो समाप्त हो गये नौकरियों की बात करें तो ना के बराबर हैं  ऐसे समय में जो हाथ का हुनर जानते हैं वही लोग काम कर पाएंगे और नव युवकों को जिनकी मानसिकता टेबल कुर्सी पर बैठकर काम करने की है और इस तरह की जो विचार रखते हैं उनको इस बात के लिए  समझाना और उनकी मानसिकता को बदलना हमारा  विशेष ध्यान इस पर रहेगा ताकि वह अपने जिस विशेष समाज से हैं वह उस समाज विशेष का कार्य करके अपना हुनर सीखे, स्वरोजगार स्थापित करे व दूसरो को रोजगार देकर अपना जीवन यापन करें !

संस्था व्यक्तित्व निर्माण में विश्वास रखती है हर एक व्यक्ति जो अपना जीवन यापन करना चाहता है अपने परिवार को बढ़ाना चाहता है उसके लिए आवश्यक है उसका परिपूर्ण होना ।

एक अच्छे व्यवसायी के लिए  अति आवश्यक है, उसका  व्यवसायिक ज्ञान के साथ ही साथ उसका व्यवहारिक ज्ञान भी होना। जो समाज मे एक सफल व्यवसायी का मुख्य गुण भी है।

  एक अच्छा नागरिक होना, देश के प्रति समर्पित होना, अपनो एवं समाज के प्रति ईमानदार होना, यह सारा व्यवहारिक ज्ञान भी संस्थान द्वारा उनको समय-समय प्रदान किया जाएगा

संस्था चर्मपदत्राण उद्यमि विकास समिति विगत 2001 से देष के कारीगर समाज के सर्वांगीण विकास के लिये प्रयासरत हे।ये एक ऐसा समाज है जिसे लोकतंत्र में सबसे अधिक नुकसान हूआ है। कारीगर समाज के नाम पर सरकार ने अनेकों योजनायें चालू कीं करोडों रूप्ये का बजट भी आबंटित हुआ किंतु इसका लाभ कारीगर को नहीं मिला।संस्था ने कई आंदोलन किये और सोती सरकार को जगाया कुछ राहत सरकार ने दी जो अपर्याप्त हेै। आज का जो मजदूर कल कारीगर हआ करता था काम न मिलने के कारण ूया पूॅजी के आभाव में कारीगरो को अपना हुनर छोडना पडा।आज बेरोजगारी की सबसे बडी समस्या की जो जड है वो है कम परिश्रम में अधिक पाना । प्रत्येक व्यक्ति जल्दी पैसा बनाना की चाह में चोरी लूट आदि के जाल मे फॅसता जा रहा है। वो अपने मार्ग से भटककर उलजलूल काम कर रहे है , कोई भी व्यक्ति गलत कामों में अपनी मर्जी से नहीं जाता उसकी मजबूरियाॅ उसे विवश करती  है। इन्हीं विचारो से हम इस प्रषिक्षण केन्द्र की योजना लेकर आये हे। व्यावहारिक प्रषिक्षण योजना के मुख्य बिंदू प्रषिक्षण आवासीय होगा। किसी प्रकार का कोई षुल्क देय नहीं होगा।प्रषिक्षण अवधि 2 से 5 माह तक अलग अलग विधाओं के अनुसार होगी। प्रशिक्षार्थी को पूर्ण समय प्रषिक्षण केन्द्र में रहना होगा। संस्था के सभी नियमों का पालन अनिवार्य होगा। प्रशिक्षार्थी को उसके रूचि का विषय में ही प्रषिक्षण दिया जावेगा। एक व्यक्ति एक ही विषय में प्रषिक्षण ले सकेगा। प्रषिक्षण पूर्णतया व्यावहारिक होने से प्रषिक्षण कार्य अवधि में कार्य करना आवष्यक होगा। प्रषिक्षणार्थी को किसी प्रकार का कोई भत्ता आदि देय नहीं होगा

आइए हम अपने भारत को स्वरोजगार बनाने के लिए मिलकर काम करें

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प्रशंसापत्र

चर्म पदत्राण उद्यमी विकास समिति भारत के उज्ज्ल भविष्य का स्वर्णिम सपना मुझे एक बार आदरणीय श्यामराव पेंढारकर जी के साथ स्वरोजगार प्रशिक्षण केन्द्र के भूमि-मिपूजन में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यक्रम इन्दौर के समीप महू डाँव के आसपास था। हम अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं के सान्निध्य मिलने का अवसर मिलेगा इस भाव से भूमिमिपूजन में सम्मिलित थे। समय पर्याप्त था। श्यामराव पेंढारकर जी सामाजिक उद्यमी हैं, समाज जीवन में उनके द्वारा किए गये अने कार्य उनके पुरुषार्थ की जीवंत कहानियाँ हैं। भूमिमिपूजन के समय स्वरोजगार की एक प्रदर्शनी लगी हुई थी। उस प्रदर्शनी का जब हम अवलोकर कर रहे थे तब उस प्रदर्शनी में बीस वर्ष के उपक्र्मों का विहंगावलोकन था। बीस वर्ष का एट ए ग्लांस देखकर मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। विविध कलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की सक्सेस कहानी देखकर मेरी जिज्ञासा बढ़ी हुई थी, उसी समय श्यायराव पेंढारकर जी मुझे दिख गये, वे यद्यपि व्यस्त थे फिर भी वह मेरे पास आ गये और प्रश्नों का संतोष जनक उत्तर देने लगे। श्यायराव ने रवीन्द्र शर्मा 'गुरूजी' का उल्लेख करते हुए मुझे बताया कि भारत कला प्रधान देश है उसे मात्र कृषि प्रधान देश कहना सर्वथा अनुचित व आन्यायपूर्ण है। भारत के छः लाख से अधिक गावों में विविध कलाएँ थीं, वह वहीं पर फलती फूलतीं थी और इतना ही नहीं, इन कलाओं के माध्यम से भारत स्वरोजगार संपन्न सशक्त राष्ट्र था। भारत की असली ताकत उसका स्वरोजगार संपन्न होना था। भारत का हर परिवार सामाजिक जीवन से जुड़े विविध रोजगारों से जुड़ा हुआ था। कोई भी राज्याश्रित नहीं था, सभी स्वभिमान संपन्न स्वाबलंबी नागरिक थे। श्यामराव के साथ की वार्ता ने मेरे अनेक प्रश्नों के उत्तर बड़ी सहजता से दे दिए, मुझे भी वह सब सुनकर अच्छा लगा। उसदिन जो भूमिमिपूजन था वह चर्म पदत्राण उद्यमी विकास समिति के प्रशिक्षण केन्द्र बनाने का भूमिमिपूजन था।

पद्मश्री महेश जी शर्मा शिवगंगा झाबुआ
शिवगंगा झाबुआ

चरम उद्योग से पिछले क़रीब ४ दशकों से जुड़ा हूँ। 1983 में चर्म निर्यात परिषद से शुरुआत की । विभिन्न पदों पर रहते हुए अलग अलग ज़िम्मेवरियो को सम्भाला। चर्म उद्योग के प्रतिनिधि के रूप विभिन्न देशों में चर्म निर्यात को बढ़ाने के लिए काम किया। उद्योग को प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध करने के लिए कई केंद्रो की स्थापना की । वर्तमान में चर्म निर्यात परिषद की प्रशासनिक समिति का सदस्य हूँ तथा कानपुर उन्नाव leather cluster development company जो कि ऐक विश्व स्तरीय cluster है का कार्यकारी निदेशक हूँ ।चर्म पदतरान विकास समिति से 2012 जुड़ा हूँ । ऐ संस्था बहूत ही अच्छा काम कर रही है और मेरा सहयोग और शुभकामना इस संस्था के साथ है।

ओपी पांडेय कार्यकारी निदेशक

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